गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

क्या आपने मनुष्य होने के सर्वप्रथम उत्तरदायित्व को निभा लिया है ?

                                                ॐ श्री महागनेशाय नमः



ये प्यार और केरियर क्या होता है में नही जानता , यह शायद किसी कमजोरी का नाम है । जंहा तक मेने अपने महान पूर्वजों को जाना है वे प्यार तो नही करते थे परंतु आने वाली पीढ़ी मे शुभ गुणो के विकास और संरक्षण के लिए बड़े-बड़े त्याग कर दिया करते थे ।हाँ प्रेम कह सकते है परंतु प्रेम भी करते थे तो सभी के शुभ लिए करते थे वे विवाह भी करते थे तो भविष्य की संतान के शुभ के लिए ही करते थे । संतान को जन्म देने के लिए जो गर्भ का आधान करते थे वह भी नियमानुसार अनुकूल समय पर ही करते । आज जिसे प्यार कहा जाता है वह आज सिर्फ स्वयं के लिए ही किया जाता है । आज कोन स्त्री यह या पुरुष यह देखता है की उसे वैदिक नियमो के अनुसार बेहतर ,गुणवान और योग्य साथी का चुनाव करना चाहिए और अनुकूल समय मे श्रेष्ठ संतान को जन्म देने के प्रयास करने चाहिए । आज सभी सिर्फ स्वयं से प्यार करते हैं । आज दुनिया मे तरह-तरह की बुराइया हैं इसका असली कारण स्वयं के किया गया अत्यधिक प्यार ही है । जो उसे अपने साथी मे गुणो की अपेक्षा अपने सुख को देखने के लिए मजबूर करता है । आज बड़े-बड़े साधू-साध्वी बनकर बैठे हैं सबसे पहले उनको यह बताना चाहिए की यदि वे इतने ही ज्ञानी और महान हैं तो उन्होने क्या अपने जीवन के श्रेष्ठ समय मे वैदिक नियमो का पालन करते हुये श्रेष्ठ गुणवान साथी का चुनाव करके बिना अपने किसी स्वार्थ के श्रेष्ठ संतान को जन्म देकर इस धरती के सबसे अधिक श्रेष्ठ जीव का होने उत्तरदायित्व निभा लिया है । और  यदि आप वास्तव मे ज्ञानी हैं और उस साधु या साध्वी के पद पर हैं तब आपका उत्तरदायित्व और भी आधी हो जाता है आपके लिए तब जरूरी है की जिस एक श्रेष्ठ बीज के विकास को आपने रोका उसके बदले आप कई श्रेष्ठ बीजों की श्रंखला का विकास करें । नही तो हमने या आपने  स्वयं मे भले ही अनगिनत गुणो का विकास क्यूँ न कर लिया हो वह पशु से बदतर है ।

आज सिर्फ कुछ लोगों को छोड़कर कोन एसा है जो अपने इस सर्वप्रथम और सबसे अधिक श्रेष्ठ उत्तरदायित्व से संबंधित किसी भी विषय को जानता है । एक श्रेष्ठ संतान को जन्म देने का मनुष्य की आयु का जो समय सबसे अधिक श्रेष्ठ हैं उसमे तो आज वह स्वार्थ सिद्ध करने मे लगा रहता है और संतान के जन्म के लिए जिन नियमो का पालन करना चाहिए इसका तो उसे ध्यान क्या ज्ञान ही नही है , जब आग लगी उस पर पानी डाल दिया और उससे जो कोयला बना उसे संतान मानकर आज के मलेच्या प्रभाव से युक्त तरह-तरह के विष को संस्कार और शिक्षा का नाम देकर विषेला बना रहा है ।

यदि हम वास्तव मे मनुष्य हैं तो वेदिक नियमो को समझिए और उसके अनुसार ही विवाह और संतान को जन्म देने के प्रयास कीजिये । हम हिंदु हैं और हमने सदा स्वयं के सुख की बजाय सभी क्षेत्रों मे शुभ प्रभावों को बढ़ाने के प्रयास किए हैं । यह विशाल धर्मपुरुष के शरीर का सिर्फ एक छोटा सा अंग है । वास्तव मे धर्म क्या है इसको आज समझना जरूरी है हम मनुष्य हैं और हमे अपना सुख और स्वार्थ न देखते हुये धर्म , जिसे हमारे पूर्वजों ने धर्म बताकर नियमों और परंपराओं मे प्रतिष्ठित कर दिया है उसका पालन करना ही मनुष्य का उत्तरदायित्व है ।

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