गुरुवार, 18 नवंबर 2010

संस्कृत के शब्दों मे आधुनिक उपकरणो के कारण होने वाली विक्रती और हो सकने वाले दुष्प्रभाव


                                                                                  ॐ श्री आदिगणेशाय नमः 

आज जगह जगह संस्कृत के मंत्रों ,श्लोकों ,और स्त्रोतों की सीडी ,डीवीडी आदी बाजार मे धड़ल्ले से बिक रही हैं और सब उनको सुन भी रहे हैं । परंतु वास्तव मे हमारे द्वारा बोले गए शब्दों और उन्ही शब्दों को किसी भी आधुनिक उपकरण द्वारा सुनने से होने वाले प्रभाव मे बहुत अंतर है ।यंहा मै दो चित्र दिखा रहा हूँ जिसमे पहले चित्र मे वह ध्वनि तरंग (साउंड वेव ) जो हमारे बोलने पर बनती है । और दूसरी वह है जिसको डिजिटल रूप मे बदलने के लिए परिवर्तित किया जाता है ताकि कम्प्युटर ,आई पॉड,एमपी 3 प्लेयर ,वीसीडी प्लेयर,डीवीडी प्लेयर आदी मे सुनने के लायक बनाया जा सके ।  जब कोई भी तरंग इस तरह विक्रत हो जाती है तो उसकी सुकछम छती को कोई भी पूरा नही कर सकता । हमे सुनने मे तो कोई भी अंतर नही मिलता परंतु अंतर तो होता है । जैसे हमारे घर मे उपयोग की जाने वाले बल्बों मे जो प्रकाश हमे एक जैसा प्रतीत होता है वो प्रकाश वास्तव मे 1 सेकेंड मे करीब 50 बार जलता और बुझता है विद्धुत के दबाव मे होने वाले परिवर्तन के कारण, उसी तरह संस्कृत के शब्दों मे आई विक्रति भी हमे समझ नही आती । परंतु जो प्रभाव किसी मनुष्य द्वारा बोले शब्दों का होता है वो किसी भी उपकरण के द्वारा सुने जाने पर प्रसारित किए जाने पर कभी नही हो सकता । शस्त्रों के अनुसार संस्कृत के शब्दों के उच्चारण,लय,तीव्रता  और समय जैसे कई बातों पर ज़ोर दिया गया है । तब इस तरह विक्रत ध्वनि तरंगों से युक्त संस्कृत के शब्दों का श्रवण करना मेरे अनुसार तो हानिकारक है । क्योंकी शास्त्रों के अनुसार भी संस्कृत के शब्दों के विक्रत उच्चारण ,लय आदी के दुष्प्रभावों को एक नही सभी को भोगना पड़ता है । हम सिर्फ भजन आदि को ही सुन सकते हैं एसे तो उसमे भी दोष होता है ।डिजिटल उपकरणो के बजाय पुराने लाउडस्पीकर आदी की ध्वनि तरंगें ज्यादा सही हैं क्योंकी वो सिर्फ उनको एम्प्लीफाई करती हैं बिना अधिक परिवर्तन के । परंतु फिर भी प्रत्यक्छ श्रवण की जाने वाली ध्वनि तरंग ही सबसे ज्यादा सही है । शास्त्रों मे वाणी के दोष बताए गए हैं जैसे कोइ बहुत ही कठोर वाणी मे या हकलाते हुये या अत्यधिक मीठी  बनावटी वाणी  मे उच्चारण करता है तब भी दोष होता है । आज संस्कृत के शब्दों ,मंत्रों को आधुनिक वाध्य यंत्रों के साथ रीमिक्स बनाकर और भी अधिक दोषपूर्ण बनाया जा रहा है ।   

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