गुरुवार, 18 नवंबर 2010

औंकार


                                                                          औंकार स्वरूपाय श्री महागणेशाय नमः

शास्त्रो मे लिखा है औंकार ( अ ,उ,म ) अकार भगवान श्री ब्रह्मा , उकार मे भगवान श्री विष्णु और मकार मे भगवान भोलेनाथ का स्वरूप है । और औंकार पूर्ण ब्रह्म है । औंकार को भगवान श्री महागणेशजी का शरीर भी कहा गया है । अर्थात त्रिदेवो का संयुक्त रूप ही भगवान श्री महागणेशजी हैं । भगवान भोलेनाथजी की आरती मे यह कहा भी गया है कि औंकार के मध्य मे त्रिदेव एक हैं । औंकार को शब्द ब्रह्म कहा गया है । ब्रह्म उसको कहा जाता है जिसमे उत्पत्ती ,जीवन और लय यह तीनों क्रिया हों । अब औंकार मे भी यह तीनों क्रिया हैं 'अ' उत्पत्ती ,'उ' जीवन और 'म' लय । यही 
  तीनों क्रिया इस धरती और इस धरती से बाहर सभी जगह है इसलिए ब्रह्म को सगुण साकार कहा जाता है ।और इसका विस्तार और सूक्ष्मता अनंत है इसलिए निर्गुण और निराकार भी कहा जात है ।

औंकार को मंत्रों के पहले लिखा जाता है जिसमे सबसे पहले उस अनंत परमात्मा को स्थान दिया जाता है । जैसे -

ॐ नमः शिवाय

इस मंत्र का पूरा अर्थ है- निर्गुण,निराकार ब्रह्म के सगुण साकार स्वरूप प्रलय और मृत्यु के देवता श्री शंकरजी कों नमन करता हूँ ।

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