गुरुवार, 18 नवंबर 2010

वेद और शास्त्रनुसार विवाहों के भेद और इनसे जन्मी संतानों के गुण


                                                                                    ॐ श्री महागनेशाय नमः 

     चारो वर्णो के,इस लोक और परलोक के हिताहित के साधन करनेवाले 8 प्रकार के विवाह कहे गए हैं । ब्राह्म-विवाह ,देव-विवाह,आर्ष-विवाह,प्राजापत्य-विवाह,आसूर-विवाह,गंधर्व-विवाह,राक्छस विवाह,पिशाच विवाह।

(1) अच्छे-शील स्वभाव वाले उत्तमकुल के वर को स्वयं बुलाकर उसे अलंक्रत और पूजित करके कन्या देना  विवाह है ' ब्रांह्य-विवाह' है । 
(2) यज्ञ मे सम्यक प्रकार से कर्म करते हुये ऋषित्वज को अलंक्रत कर कन्या देना 'देव-विवाह' है ।
(3) वर से एक या दो जोड़े गाय-बैल धर्मार्थ लेकर विधी पूर्वक कन्या देने को 'आर्ष-विवाह' हैं ।
(4) 'तुम दोनों एक साथ ग्रहस्थ धर्म का पालन करो ' यह कहकर पूजन करके कन्या देने को ' प्राजापत्य विवाह' कहते हैं ।
(5) कन्या के पिता आदि को और कन्या को भी यथा-शक्ति धन देकर स्वछंदतापूर्वक कन्या का ग्रहण करना या संबंध बनाना 'आसूर-विवाह' है ।
(6) कन्या और वर की परस्पर इच्छा से जो विवाह या संबंध बनाना 'गंधर्व-विवाह' है ।
(7) मार-पीट करके रूठी-चिल्लाती हुयी, कन्या का अपहरण करके लाना या संबंध बनाना  'राक्छस-विवाह'  है ।
(8) सोयी हुयी,काम के मद से मतवाली ,या पागल कन्या से ,या गुप्त रूप से उठा ले आना या संबंध बनाना  'पिशाच-विवाह' है ।

    इसके अलावा भी एक विवाह है जिसमे मन ही मन किसी को पति या पत्नी मान लेना या संबंध बनाना  'मानस-विवाह' हैं ।     

   ब्राहम-विवाह से उत्पन्न धर्मचारी पुत्र (पुत्री मे आनुवंशिक गुण स्थायी रूप से सदा नही रह पाते कुछ ही पीड़ियों बाद वो लुप्त हो जाते हैं )  दस पीडी आगे और दस पीड़ी पीछे के कुलो का तथा 21 व अपना भी उद्धार ( उक्त कुल के सभी वंशो के आनुवंशिक गुणो को सक्रिय कर देता है और स्वयं के द्वारा विकसित गुणो का भी स्थायी रूप से समावेश  )करता है ।

   देव-विवाह से उत्पन्न पुत्र सात पीडी आगे तथा सात पीडी पीछे इस प्रकार 14 पीड़ियों का उद्धार करने वाला होता है ।

  आर्ष-विवाह से उत्पन्न पुत्र 3 अगले तथा 3 पिछले कुलो का इस करता है ।

  प्राजापत्य-विवाह से उत्पन्न पुत्र  6 पीछे तथा 6 आगे के कुलो को तारता है ।

  ऊपर के 4 विवाहो से उत्पन्न पुत्र ब्रह्म-तेज से सम्पन्न ,शीलवान, रूप, सत्वादीगुणो से युक्त ,धनवान, पुत्रवान ,यशशवी, धर्मिष्ठ और दीर्ध्जीवी होते हैं । शेष चार विवाहो से उतपन पुत्र क्रूर-स्वभाव धर्म-द्वेषी और मिथ्या-वादी होते है ।अनिंद्य विवाहो से संतान भी अनिंद्य होती है । निंदित विवाहो से निंदित संतान का ही जन्म होता है ।

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